गुरुवार, 22 जून 2017

नीलम - शनि का रत्न




माणिक और हीरे तो रत्नों के राजा कहलाते है | उनके बाद यदि कोई दूसरा रत्न रत्नों का उपराजा कहलाने का अधिकारी है तो वह नीलम है | कुछ लोगो को शायद यह जानकर आश्चर्य होगा की लाल रंग का माणिक एवं नीले रंग का नीलम एक ही खनिज कोरन्डम के दो रूप है | नीला कोरन्डम नीलम तथा लाल कोरन्डम माणिक कहलाता है | एक ही खनिज कोरन्डम के हो के भी इनमे भिन्नता है | नीलम माणिक से थोड़ा कठोर होता है इसलिए दोनों के विशिष्ट गुरुत्व में भी अंतर होता है | नीलम का विशिष्ट गुरुत्व 4.08 है जबकि माणिक का 3.99 से 4.06 तक होता है |


खनिज विशेषज्ञ फ्रेडरिक मोह के कठोरता मानदंड के अनुसार इसका काठिन्य 9 है | प्राचीन समय में नीलम को कोई नहीं जानता था तथा आज जो रत्न लाजवंती (लापीस लॉजुली) कहलाता है और जिसका नीलम से कोई सम्बन्ध भी नहीं वही रत्न नीलम के नाम से जाना जाता था | नीलम में प्रिज्मैटिक रंग प्रदर्शित करने की क्षमता हीरे की अपेक्षा नहीं के बराबर होती है | क्योंकि कोरन्डम  में प्रकाश का वर्ण-विक्षेपण कम होता है इसलिए इसमें दमक एवं जाज्वल्यता भी हीरे की तुलना में कम होती है |


यह ऑक्सीजन और एल्युमीनियम का योगिक है जिसमे 97.51 एल्युमीनियम, 1.89 आयरन ऑक्साइड और 0.80 सिलिकॉन होता है | थोड़ी मात्रा में कोबाल्ट, लोहा या टाइटेनियम मिला देने के कारण ही नीले रंग का दिखाई देता है | नीलम में रंगों के फैलाव में मणिको की अपेक्षा अधिक अनियमितता पाई जाती है | नीलम का नीला रंग ताप देने से ख़राब हो जाता है | ठंडा होने पर यह अपना चमकीला सुन्दर रंग खोकर एक कांतिहीन सुरमई या बादलो जैसा रंग धारण कर लेता है |


नीलम के विभिन्न प्रकार

भारतीय नीलम तो अति सरलता से अपना रंग गवा देता है | फिर भी हलके रंग धारियो वाले नीलम को ताप विधि द्वारा रंगहीन नीलम में परिवर्तित करना संभव है | रंगहीन या हलके रंग वाले नीलमो में रंगीन धरियो का विभाजन समरूपता लिए हुए नहीं होता और कभी कभार ही ऐसे नीलमो के रंगों में समरूपता नज़र आती है |
रंगों का समरूप विभाजन नहीं होने के कारण बहुत से नीलम ऐसे मिलते जिनका एक सिर यदि रंगीन है तो दूसरा सिरा रंगहीन, या दोनों सिरे रंगहीन है और बीच में रंगीन | कभी-कभी यह क्रमश: रंगीन एवं रंगहीन धारियों के रूप में भी मिलते हैं | एक 19.125 कैरट का नीलम मिनरलॉजिकल कलेक्शन में रखा हुआ हैं |

कभी-कभी सुनहले, नारंगी और बैगनी रंग के नीलम भी मिलते हैं | बिलकुल गहरे शेड का नीलम जो रंग में कालेपन की सीमा तक पहुँच जाये इन्की सफायर तथा बहुत पिली झलक मारने वाला हल्का नीला नीलम नारी नीलम ( फेमिनिन सफायर ) या जल नीलम कहलाता हैं |


रंगों के गहरेपन का नीलम के प्रभाव पड़ता हैं | गहरे रंगों के पारदर्शक नीलम चूँकि दुर्लभ होते हैं इसलिए इनका मूल्य भी अधिक होता हैं | ऐसे नीलम जिनकी ऊपरी सतह पर बिभिन्न कणों से देखने पर एक छह किरणों वाला सितारा दिखाई देता वह स्टार सफायर कहलाता हैं तथा अत्यंत मूल्यवान होते हैं |

ऐसे नीलम जिनकी ऊपरी सतह पर विभिन्न कोणों से देखने पर एक छह किरणों वाला सितारा दिखाई देता हैं वह स्टार सफायर कहलाते हैं तथा अत्यंत मूल्यवान होते हैं | यह सितारा एक विशेष तराश, "कैबोकॉन कट" में तराशे जाने से ही अधिक उजागर होता हैं | स्टार माणिक की अपेक्षा स्टार नीलम प्रचुर मात्रा में मिलते हैं |
कुछ नीलम में छह किरणों का सितारा न बनकर केवल एक ही किरण बनती हैं | ऐसे नीलम लहसुनिया नीलम या कैट्स ऑय सफायर कहलाते हैं | सितारा बनाने वाले नीलम पूर्णतः साफ़ एवं पारदर्शक कभी नहीं होते | इनमे रंगहीन व नीली धारिया क्रमसः होती हैं |

कैबोकॉन तराश में यूरोप में केवल स्टार नीलम ही तराशे जाते हैं | जबकि भारत में सादा नीलम भी इस तराश में तराशा जाता हैं | हीरे व माणिकों में तराशी जाने वाली लगभग सभी तराशो में नीलम भी तराशा जाता हैं | गहरा नीला नीलम नर नीलम (मस्क्युलिन सफायर) व हल्का नीला नीलम नारी नीलम (फेमिनिन सफायर) कहलाता हैं |

सुन्दर रंग वाला, कोमल स्पर्शी, वजन में भारी, पारदर्शक, चिकना दाग धब्बे व चीर रेखाओं रहित, सुन्दर आकार वाला, सुडौल, आभा व कान्तियुक्त, अलसी के फूल या मोर की गर्दन जैसे नीले रंग, झिलमिलाते पानी वाला नीलम सर्वोत्तम नीलम होता हैं | जालायुक्त, दुरंगा, धागे जैसे चिंन्ह वाला, रेखा व गढ़े वाला, अंदर से रंगहीन, चमक रहित, डंक वाला, दूधिया, चीरी, सुन्न, धब्बे वाला तथा त्रुटिपूर्ण नीलम दोषपूर्ण नीलम होता हैं |
आकर्षक रंग वाले व त्रुटिहीन नीलम एच मूल्य पाते हैं | बड़े आकार के तथा उत्तम श्रेणी के नीलम इसी प्रकार के माणिकों की अपेक्षा अधिकता से प्राप्त होते हैं | माणिक की अपेक्षा नीलम काम मूल्यवान होता हैं |
उत्तम श्रेणी के दो-तीन कैरट के नीलम का मूल्य इसी प्रकार के ऐसे ही वजन के हीरे के बराबर होता हैं | त्रुटियुक्त नीलम जिनके रंगों में अत्यधिक अनियमिमता व पीलापन हो कुछ शिलिंग कैरट से अधिक मूल्य नहीं पाते |

प्रसिद्ध नीलम और इतिहास

बड़े माणिकों की तुलना में बड़े नीलम अधिक मिल जाते हैं | परंतु इनमे त्रुटियों की संभावना अधिक होती हैं तथा माणिक की अपेक्षा इनमे बादल, दुधियापन, अर्ध पारदर्शक इत्यादि विद्यमान होते हैं |
कुछ नीलम अपने अत्यंत आकर्षण एवं आकार के कारण प्रसिद्ध हुए हैं | ऐसे ही बर्मा से प्राप्त एक दैदीप्यमान 951 कैरट का नीलम सन 1827 में ऐवा के राजा के खजाने में देखा गया था | पेरिस के एक संग्रहालय में 132 कैरट का एक रफ़ (बिना तराशा हुआ) नीलम था जो की बंगाल में मिला था | इसे रोजपोली नीलम कहते हैं |
पेरिस के उसी संग्रहालय ( जार्डिन डेस प्लांट्स)  में एक दूसरा दो इंच लंबा व डेढ़ इंच मोटा नीलम है | एक 100 कैरट से भी अधिक वजन का नीलम ड्यूक ऑफ़ डिवोनशायर के पास था | उसका निचला भाग स्टेप कट में था जबकि ऊपर से उसे ज्वलंत तराश ( ब्रिलियंट कट) में तराशा गया था |

प्रसिद्ध नीलमो में जिनमे गहरे इन्की व त्रुटियुक्त नीलम भी शामिल है एक 252 कैरट का नीलम सन 1862 में लन्दन में दिखाया गया था | एक सुन्दर नीला नीलम जिसके एक ओर पीत सिघम था (225 कैरट का) सन 1867 में पेरिस में प्रदर्शित किया गया था | अमेरिका के अमेरिकन म्यूजियम ऑफ़ नेचुरल हिस्ट्री में 536 कैरट का नीलम है जो की स्टार ऑफ़ इंडिया के नाम से प्रसिद्ध है | इसी म्यूजियम में 116 कैरट का काले सितारे वाला नीलम है जिसको मिडनाइट स्टार कहते है | एक नीलम 337.10 कैरट का मिला था | एक बड़ा नीलम लंका के रत्नपुर क्षेत्र से मिला था | तराशने व पॉलिश करने के बाद भी इसका भर 446 कैरट था |

ऑस्ट्रेलिया की ग्रीनलैंड खान से सन 1935 में संसार का सबसे बड़ा नीलम 2302 कैरट का प्राप्त हुआ था | एक कारीगर ने इसको 1800 घंटे के कड़े परिश्रम के बाद राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन के सिर के रूप में तराशा था | यह अब राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन संग्रहालय में है |

सन 1955 ने हैदराबाद के किसी नवाब के पास एक इस नीलम था जो की संसार का सबसे बड़ा त्रुटिहीन नीलम समझा जाता है | उसको उन्होंने नेशनल परचेज कमेटी के हाथ बेच था | यह नीलम एक बड़े अंडे के आकार का है जिसको तराशकर बूँद की आकृति दे दी गयी है | इसका वजन  916 कैरट (16 तोले), लंबाई 3.5 इंच और चौड़ाई दो इंच व मोटाई एक इंच है |

ब्रिटैन की एक फर्म ने सन 1920 में इसका मूल्य 40,000 पौंड लगाया था | इस दावे को की यह संसार का सबसे बड़ा त्रुटिहीन नीलम है किसी ने भी चुनौती नहीं दी है | किसी समय यह श्री लंका के एक बोध भिक्षुक के पास था | फिर बहुत से व्यक्तियों से होता हुआ मैसूर के टीपू सुल्तान के पास पहुंचा था | जिसको उन्होंने ने सन 1794 में अपने एक दरबारी अर्थात नवाब साहब के पूर्वजो में से किसी को भेंट स्वरुप दिया था | एक 1000 कैरट का नीलम सन 1930 में भी मिला था |

केवल पारदर्शी व सुन्दर रंग वाले नीलम ही रत्नों के रूप में प्रयोग होते है | परंतु ऐसे बड़े बादल युक्त मणिभ जिनमे प्रायः एक छोटा सा भाग ही पारदर्शक एवं साफ़ होता है, उसको भी कुशल रत्न तराश बड़ी कुसलतापूर्वक तराश कर सुन्दर रत्नों में परिवर्तित कर देते है |

नीलम की पहचान

वाटर सफायर ,क्यानाइट, ब्लू टुर्मलीन, नीला पुखराज और स्पाइनल ऐसे रत्न है जिनमे प्रायः नीलम का धोखा हो सकता है | ऐसे ही रत्नों में हायनाइट, ब्लू डायमंड और अक्वामरीन को भी जोड़ा जा सकता है |
इनको पहचानने के लिए यदि इन्हें 3.6 विशिष्ट गुरुत्व वाले मेथिलीन आयोडाइड के भारी विलयन में डाला जाए तो नीलम तो तीव्रता से डूब जाता है जबकि स्पाइनल व क्यानाइट छोड़कर शेष सब तैरने लगते हैं |
ब्लू डायमंड को तो खुरचकर ही पहचाना जा सकता है अर्थात नीलम उससे खुरच जाता है जबकि शेष सब रत्नों  के द्वारा नीलम खुरचा जा सकता है | ब्लू टुर्मलीन का नीलापन नीलम से भिन्न  होता है | उसका रंग आसमानी नीला होता है |
कायानाइट में आयताकार चिराव होते हैं जो कि नीलम में नहीं मिलते | कायानाइट का नीलापन नीलम से इतना मिलता है कि इसका नाम ही सैपर रख दिया गया है (जबकि नीलम को अंग्रेजी में सफायर कहते हैं) परंतु इसको पारदर्शकता नीलम की तरह साफ नहीं होती |
सफेद नीलम, हीरा, रंगहीन लालड़ी, गोमेद, सफेद पुखराज, स्फटिक और फीनाकाइट  भी एक दूसरे का भ्रम उत्पन करते हैं इनको भी ऊपर दी गई विधियों से ही पहचाना जा सकता है |
प्राकृतिक नीलम अपने आकार की तुलना में हल्का होता है तथा इसमें विद्यमान रंगों की धारियां सीधी नजर आती हैं धूप में रखने पर प्राकृतिक नीलम चमकने लगता है तथा इसमें से तेज किरणें निकलती है | प्रिज्म में देखने पर इस में बनफ़शी रंग की किरणें निकलती दिखाई देती हैं |

नीलम के पाए जाने वाले स्थान

नीलम अधिकतर थाईलैंड, कश्मीर, वर्मा, बैंकॉक, श्रीलंका, ऑस्ट्रेलिया विशेषकर न्यू साउथ वेल्स रोडेशिया और मोंटाना ( संयुक्त राज्य अमेरिका ) में मिलता हैं | शताब्दियों से संसार का सर्वश्रेष्ठ नीलम भारत के कश्मीर क्षेत्र में मिलता रहा हैं | आज भी यहाँ का नीलम अपने गुणों में अद्वितीय माना जाता हैं | सन 1881-82 में यहाँ  इसकी खोज हुई थी | कश्मीर में इसकी खाने संजाम के पश्चिम-उत्तर-पश्चिम में लगभग 15000 फुट की ऊँचाई पर ढाई मील दूर झांसकर के पदार क्षेत्र में हैं | यहाँ का नीलम इतना सुन्दर होता हैं की बिना तराशे ही इसके विषय में कुछ भी न जानने वाले लोगों को भी अपनी और आकर्षित कर लेता हैं |

किसी भी अन्य देश की अपेक्षा यहाँ का नीलम मूल्यवान माना जाता हैं | यहाँ के नीलम की कच्चे नीलम में यह विशेषता होती हैं की जरा सा रंग भी पूरे नीलम को रंगीन बना देता हैं परंतु इसमें एक त्रुटि भी हैं की खान की मिट्टी इस से चिपकी रहती हैं जो की सरलता से अलग नहीं होती |पहले यहाँ के निवासी चूंकि इसका मूल्य नहीं जानते थे इसलिए इन्हें शिमला व देलही के व्यापारियों को कोड़ियो के मोल बेच देते थे | तत्पश्चात जब वहां के राजा को इसका पता चला तो उसने वह जाने पर रोक लगा दी | बिना सरकारी अनुमति पत्र के कोई वह नहीं जा सकता था | बड़े नीलम भी यहाँ काफी मिलते हैं जो की प्रायः पाँच इंच लंबे व तीन इंच मोठे होते हैं | 100-300 कैरट के नीलम भी यहाँ मिले हैं | परंतु नीलम निकालने में सबसे बड़ी कठिनाई कुछ महीनों को छोड़कर पूरे वर्ष बर्फ जमी रहना हैं इसलिए यहाँ  से पाए जाने वाले नीलम का मूल्य अधिक होता हैं |
बिजली के प्रकाश में भी यहाँ के नीलमों के रंग में कोई परिवर्तन नहीं आता | जबकि अन्य स्थानों का नीलम नेवी ब्लू रंग का हो जाता हैं | कश्मीर के अतिरिक्त भारत में नीलम आबू पर्वत के अंचल, विंध्य, हिमालय तथा सलेम में मिलता हैं | बर्मा में यदि 500 माणिक मिलते हैं तो एक नीलम भी निकलता हैं | यहाँ 1988, 951, 820 व 253 कैरट के नीलम भी मिले थे | वैसे 6-9 कैरट तक के नीलम तो यहाँ प्रायः मिलते रहते हैं | अब तक यहाँ से सबसे बड़ा त्रुटिहीन नीलम 79.5 कैरट का मिला है | लंका में इसकी वार्षिक पैदावार केवल 15000 पौंड तक ही है |

नीलम के अन्य प्रयोग

संश्लिष्ट और दोषपूर्ण नीलमों का उपयोग अब्रेसिव (abrasive) पदार्थ के रूप में किया जाता है | रत्नों की पॉलिशिंग, प्रकाशीय तालों की घिसाई, स्पार्क प्लगों के निर्माण, घड़ियों, रेडियो के ट्रांसमीटरों तथा वैज्ञानिक यंत्रो में लगाने आदि में भी इनका प्रयोग किया जाता है |


भाग्य रत्न का चुनाव कैसे करें

भाग्य रत्न का चुनाव कैसे करें

कोई  भी  रत्न  अपनी  मनमर्जी  से  नहीं  पहनना चाहिए  | रत्न  का  निश्चय  करने  की  लिए  रत्न  बताने  वाला  सबसे  पहले  तो  रत्नों  की  प्रभाव  ,गुणधर्म  और   व्यक्ति के लिए उसकी ज़रूरत को तय करने वाला स्वयं  विशेषज्ञ यानि दाक्षायण हो,अपने काम में कुशल, दक्ष और ऊहापोह करके शुभ अशुभ या मध्यम अनुकूल रत्न  का निश्चय करने में माहिर हो |
दूसरी  बहुत खास बात प्रकट होती है की रत्न बताने वाला व्य्क्ति  सुमनस्यमान यानी स्वयं   अच्छे मन  वाला, अपने निजी अपस्वार्थ  की परवाह न करने वाला, सज्जन,गुमराह  करने  वाला न हो |

रत्न   निश्चय  का आधार 

अथर्ववेद के पहले काण्ड  से ही व्यक्ति के लिए अनुकूल,सुखदायक,आयुर्वर्धक मणियों आदि का वर्णन शुरू हो जाता है | इसीलिए पहला ही मंत्र  हमें   मणि आदि अनुकूल चीज़ को तय करने का आधार बता देता है | किसी  निश्चित  नतीजे पर  पहुंचने  से  पहले  पाठक यदि मन्त्र के अर्थ को ठीक से समझ  लें तो सारी बात खुद ब खुद शीशे की तरह साफ हो जाएगी |अथर्ववेद के अनुसार -

 'ये जो तीन और सात तत्व सारे आकाश में अपने भौतिक रूप से चारों ओर परिभ्रमण करते हैं, उन सबका बाल,सुफल,शुभता,अनुकूलता आज मुझे वाणी और विध्या का पति यानि स्वंय प्रभु या विद्वान  मेरे लिए निश्चित कर दे |'

सूर्य की सात किरणों, सात ग्रहों ,सात रंगों का प्रभाव रत्नों के रूप में हमारे उपयोग के लिए ईश्वर ने समाहित किया हैं | इससे यह प्रकट होता है कि अनुकूल रत्न, मणि ,ओषध तय करने कि लिए व्यक्ति की निजी जन्मकुंडली,चंद्र  राशि  या सूर्य राशि निर्णायक है | इनका विश्लेषण करके भाग्य रत्न का निश्चय करने के लिए सुमनस्यमान दक्ष व्यक्ति ही अधिकृत है, ऐसा  आशय पीछे प्रदर्शित कर चुके हैं | अन्यत्र वेद में कहा हैं 

विद्वान पुर एता ( सही जानकार विद्वान् ही सही रास्ता दिखा सकता है)

तीन लग्न : तन मन और आत्मा 

सूर्य चंद्र और जन्म लग्न क्रमशः स्थूल से सूक्ष्म की और चलते क्रम में तीन लग्न हैं | पराशर ने सुदर्शन विधि से तीनों का इकट्ठा ग्रहण करके फलादेश के विषय में इनकी महत्ता प्रदर्शित कर दी है | हम जानते हैं की सूर्य एक राशि में एक महीना रहता है | अतः उस महीने में पैदा होने वाले सब लोगो की एक ही सूर्य राशि होगी | इसी विधि से अंग्रेजी पद्धति में जन्मराशि तय की जाती है | सूर्य से सूक्ष्म चंद्रराशि है | चन्द्रमा एक राशि में सवा दो दिन रहने से चन्द्रमा के एक राशि गोचर काल यानि ५४ घंटो में धरती पर कहीं भी पैदा होने वाले अनेक लोगों की एक ही राशि रहेगी | ये दोनों राशियां सारी धरती के देशों प्रदेशों के लिए एक जैसी ही रहती हैं | सबसे सूक्ष्म जन्मलग्न है | यह स्थानीय होता है | रोजाना औसतन दो घंटे रहने वाला एक लग्न भी ५०-६० किलोमीटर दूर पड़ने वाले इलाकें में काफी भिन्न हो सकता है | इससे भी सूक्ष्म खंड इसी लग्न के वर्गविभाग होते हैं |  ये वर्ग कुण्डलिया तो थोड़ी दूरी पर ही बदल जाती हैं | लेकिन एक ही देश में अलग खड़ी पड़ी रेखाओं (रेखांश, अक्षांश) पर पड़ने वाली जगहों पर लग्न भी बदल जाता है | रत्न आदि विचार, जीवन के शुभाशुभफल विचार के लिए जन्मलग्न को सबसें अधिक महत्व दिया गया है | यदि सब काम राशि से ही चल जाये तो जन्मकुंडली बनाने की जरूरत ही नहीं रहेगी | सब लोग महीना, दिन के अनुसार सूर्य चंद्र कुंडली बना लेंगे जो उस दौरान भूमण्डल पर पैदा होने वाले सब लोगों के लिए सामान रहेगी |

इससे  निश्चय हुआ कि लग्न कुंडली के विचार के बाद ही अपने लिए अनुकूल  रत्न तय करना चाहिए | 

ग्रहों का हम पर  प्रभाव

ग्रहों के प्रभाव से ही हम बुढ़ापे तक स्वस्थ शरीर व दीर्घायु  पाकर रोगों और असमय मृत्यु  से बच सकते हैं |इससे अतिरिक्त ऋग्वेद  के अनेक मन्त्रों में  ग्रहों के दैवशक्ति और मनुष्यों पर प्रभाव का उल्लेख मिलता है | इसके लिए जिज्ञासु पाठकों को ऋग्वेद  का मंडल १०,सूक्त ४ देखना ही काफी होगा | अत: लग्न के साथ हमें ग्रहों को भी रत्न निश्चय के लिए देखना जरूरी है |इसी आधार पर लग्न सहित सात मुख्य ग्रहों को मिलाकर अष्टवर्ग  के आठ तत्वों के कल्पना की गई है |

हम जानते है की सब ग्रहों का शुभ और अशुभ, इष्ट  और अनिस्ट प्रभाव होता है | यदि सदा उनका अच्छा  हे प्रभाव होता तो दुनिया में कोई कष्ट भला क्योंकर पाता? सब लोग सुखी और दीर्घजीवी होते और वैदिक मन्त्रों में ग्रहदेवों से अच्छे फल की कामना करने की कोई दरकार हे नहीं होती |अत: निश्चय है की कुंडली के सब ग्रहों का शुभाशुभ  दोनों तरह का प्रभाव होता है |ऋग्वेद  मंडल १० अध्याय ४ , सूक्त ५६ के पांचवे मंत्र  में कहा गया है कि देवता और पितर सभी अलौकिक तत्व सारे संसार,उसमें रहने, पैदा होने वाले प्राणियों  के सुख दुःख ,बढ़ोतरी ,वंशवृद्धि आदि के लिए मूल कारण हैं | वे अपने तेज से समस्त लोक को व्याप्त किये हुए हैं| अत: ग्रहों के शक्ति अपरम्पार है | इन्हीं के अधीन सब कुछ है | इसी मंत्र में  कहा गया है कि तनुषु- सब शरीरों में विशवा-सारे, भुवनानि- लोकों को येमिरे-नियंत्रत  करते हैं|

इससे  स्पष्ट होता है कि गृह हमारे कर्मों के फलानुसार हमें इनाम व दंड यथावसर देते हैं| वेद उद्घोषणा  करते हैं कि सूर्य के साथी ये ग्रह देवता सदा जागते हैं, इनसे प्रार्थना  है कि ये हमारे भीतर बाहर सद्बुद्धि  का उजाला बिखेरते  हुए हमें अच्छे बुरे, दूर पास के, अपने पराये का भेद पहचानेंने  के शक्ति  देकर हमें पीड़ित होने यहाँ  तक की नष्ट  होने या मरने से बचाएं | मूल मंत्र  देखिये -

'सभी देवता व आकाशचारी  आदित्य-सौरमंडल के ग्रह तुम सब की रक्षा करें |वे तुम्हारे  भीतर सदा  जगती हुई अवस्था  में रहें| इस तरह से हमें छुपे और प्रकट शत्रुओं से बचाते  हुए  हमें नष्ट  होने मरने से बचाएं| 

अत:  यह कहने और मानने में किसी संकोच की जगह बचती नहीं है कि अपने किस्मत जगाने  वाले रत्न का निश्चय  करने के लिए सदा अपनी जन्मपत्री  को आधार मानना ही ठीक है | जन्मपत्री में ही सौर मंडल के ग्रहों के स्थति  स्पष्ट  रहती है | अत: रत्न निश्चय का आधार लग्न और ग्रह हैं |

इस दुनिया में अकुन ऐसा है जो कष्ट की कामना  करे ? सबको सरल, सुखी, शांत व समृद्ध  जीवन ही चाहिए | ग्रह हमें कर्मों की अनुसार फल देते हैं, तब हमारे पास क्या पैमाना हैं जिससे हम यह निश्चय कर सकें कि हमने सब शुभ कर्म ही किये होंगे, इसी से हमें सदा शुभ  फल ही मिलेंगे | अत: शुभाशुभ  फल भी हमारी नियति  है| मनुष्य पूजा, पाठ दान पुण्य, मानव मात्र क़े लिए उपकारक कार्य, रत्न, मणि, धारण आदि क्या -क्या जतन शुभ फल पाने यानि इष्टयोग और अनिष्टवियोग , अनचाये से दूरी बनाने क़े लिए नहीं करता है | जब शुभ व अशुभ दोनों  ही फल ग्रहों क़े अधीन  है और हमें समयनुसार मिलने ही हैं तो क्यों न हम कोई ऐसा जतन करें जिससे हमारे अशुभ फल क़े ताब, तासीर, जलन, संताप  कम हो सके |इसी क्रम में ऋषियों  ने मणि मंत्र और ओषध का निर्देश दिया है | मंत्र  जप, दान-पुण्य आस्तिक लोग ही कर सकते हैं, लेकिन नास्तिक या समय व विधि  ठीक से न जानने क़े कारण बहुत से आस्तिक  भी  ये विधिविधान  करने  में खुद  को मुश्किल में पाते हैं |इसीलिए  सर्वसाधारण उपायों में सिरमौर उपाय है- रत्नों से शुभता को बढ़ाना |यहीं पर यह यक्ष प्रश्न उपस्तिथ  होता है कि कौन से ग्रह का रत्न पहनें ? क्या सारे ग्रहों कि रत्न पहनें?