गुरुवार, 22 जून 2017

भाग्य रत्न का चुनाव कैसे करें


कोई  भी  रत्न  अपनी  मनमर्जी  से  नहीं  पहनना चाहिए  | रत्न  का  निश्चय  करने  की  लिए  रत्न  बताने  वाला  सबसे  पहले  तो  रत्नों  की  प्रभाव  ,गुणधर्म  और   व्यक्ति के लिए उसकी ज़रूरत को तय करने वाला स्वयं  विशेषज्ञ यानि दाक्षायण हो,अपने काम में कुशल, दक्ष और ऊहापोह करके शुभ अशुभ या मध्यम अनुकूल रत्न  का निश्चय करने में माहिर हो |
दूसरी  बहुत खास बात प्रकट होती है की रत्न बताने वाला व्य्क्ति  सुमनस्यमान यानी स्वयं   अच्छे मन  वाला, अपने निजी अपस्वार्थ  की परवाह न करने वाला, सज्जन,गुमराह  करने  वाला न हो |

रत्न   निश्चय  का आधार 

अथर्ववेद के पहले काण्ड  से ही व्यक्ति के लिए अनुकूल,सुखदायक,आयुर्वर्धक मणियों आदि का वर्णन शुरू हो जाता है | इसीलिए पहला ही मंत्र  हमें   मणि आदि अनुकूल चीज़ को तय करने का आधार बता देता है | किसी  निश्चित  नतीजे पर  पहुंचने  से  पहले  पाठक यदि मन्त्र के अर्थ को ठीक से समझ  लें तो सारी बात खुद ब खुद शीशे की तरह साफ हो जाएगी |अथर्ववेद के अनुसार -

 'ये जो तीन और सात तत्व सारे आकाश में अपने भौतिक रूप से चारों ओर परिभ्रमण करते हैं, उन सबका बाल,सुफल,शुभता,अनुकूलता आज मुझे वाणी और विध्या का पति यानि स्वंय प्रभु या विद्वान  मेरे लिए निश्चित कर दे |'

सूर्य की सात किरणों, सात ग्रहों ,सात रंगों का प्रभाव रत्नों के रूप में हमारे उपयोग के लिए ईश्वर ने समाहित किया हैं | इससे यह प्रकट होता है कि अनुकूल रत्न, मणि ,ओषध तय करने कि लिए व्यक्ति की निजी जन्मकुंडली,चंद्र  राशि  या सूर्य राशि निर्णायक है | इनका विश्लेषण करके भाग्य रत्न का निश्चय करने के लिए सुमनस्यमान दक्ष व्यक्ति ही अधिकृत है, ऐसा  आशय पीछे प्रदर्शित कर चुके हैं | अन्यत्र वेद में कहा हैं 

विद्वान पुर एता ( सही जानकार विद्वान् ही सही रास्ता दिखा सकता है)

तीन लग्न : तन मन और आत्मा 

सूर्य चंद्र और जन्म लग्न क्रमशः स्थूल से सूक्ष्म की और चलते क्रम में तीन लग्न हैं | पराशर ने सुदर्शन विधि से तीनों का इकट्ठा ग्रहण करके फलादेश के विषय में इनकी महत्ता प्रदर्शित कर दी है | हम जानते हैं की सूर्य एक राशि में एक महीना रहता है | अतः उस महीने में पैदा होने वाले सब लोगो की एक ही सूर्य राशि होगी | इसी विधि से अंग्रेजी पद्धति में जन्मराशि तय की जाती है | सूर्य से सूक्ष्म चंद्रराशि है | चन्द्रमा एक राशि में सवा दो दिन रहने से चन्द्रमा के एक राशि गोचर काल यानि ५४ घंटो में धरती पर कहीं भी पैदा होने वाले अनेक लोगों की एक ही राशि रहेगी | ये दोनों राशियां सारी धरती के देशों प्रदेशों के लिए एक जैसी ही रहती हैं | सबसे सूक्ष्म जन्मलग्न है | यह स्थानीय होता है | रोजाना औसतन दो घंटे रहने वाला एक लग्न भी ५०-६० किलोमीटर दूर पड़ने वाले इलाकें में काफी भिन्न हो सकता है | इससे भी सूक्ष्म खंड इसी लग्न के वर्गविभाग होते हैं |  ये वर्ग कुण्डलिया तो थोड़ी दूरी पर ही बदल जाती हैं | लेकिन एक ही देश में अलग खड़ी पड़ी रेखाओं (रेखांश, अक्षांश) पर पड़ने वाली जगहों पर लग्न भी बदल जाता है | रत्न आदि विचार, जीवन के शुभाशुभफल विचार के लिए जन्मलग्न को सबसें अधिक महत्व दिया गया है | यदि सब काम राशि से ही चल जाये तो जन्मकुंडली बनाने की जरूरत ही नहीं रहेगी | सब लोग महीना, दिन के अनुसार सूर्य चंद्र कुंडली बना लेंगे जो उस दौरान भूमण्डल पर पैदा होने वाले सब लोगों के लिए सामान रहेगी |

इससे  निश्चय हुआ कि लग्न कुंडली के विचार के बाद ही अपने लिए अनुकूल  रत्न तय करना चाहिए | 

ग्रहों का हम पर  प्रभाव

ग्रहों के प्रभाव से ही हम बुढ़ापे तक स्वस्थ शरीर व दीर्घायु  पाकर रोगों और असमय मृत्यु  से बच सकते हैं |इससे अतिरिक्त ऋग्वेद  के अनेक मन्त्रों में  ग्रहों के दैवशक्ति और मनुष्यों पर प्रभाव का उल्लेख मिलता है | इसके लिए जिज्ञासु पाठकों को ऋग्वेद  का मंडल १०,सूक्त ४ देखना ही काफी होगा | अत: लग्न के साथ हमें ग्रहों को भी रत्न निश्चय के लिए देखना जरूरी है |इसी आधार पर लग्न सहित सात मुख्य ग्रहों को मिलाकर अष्टवर्ग  के आठ तत्वों के कल्पना की गई है |

हम जानते है की सब ग्रहों का शुभ और अशुभ, इष्ट  और अनिस्ट प्रभाव होता है | यदि सदा उनका अच्छा  हे प्रभाव होता तो दुनिया में कोई कष्ट भला क्योंकर पाता? सब लोग सुखी और दीर्घजीवी होते और वैदिक मन्त्रों में ग्रहदेवों से अच्छे फल की कामना करने की कोई दरकार हे नहीं होती |अत: निश्चय है की कुंडली के सब ग्रहों का शुभाशुभ  दोनों तरह का प्रभाव होता है |ऋग्वेद  मंडल १० अध्याय ४ , सूक्त ५६ के पांचवे मंत्र  में कहा गया है कि देवता और पितर सभी अलौकिक तत्व सारे संसार,उसमें रहने, पैदा होने वाले प्राणियों  के सुख दुःख ,बढ़ोतरी ,वंशवृद्धि आदि के लिए मूल कारण हैं | वे अपने तेज से समस्त लोक को व्याप्त किये हुए हैं| अत: ग्रहों के शक्ति अपरम्पार है | इन्हीं के अधीन सब कुछ है | इसी मंत्र में  कहा गया है कि तनुषु- सब शरीरों में विशवा-सारे, भुवनानि- लोकों को येमिरे-नियंत्रत  करते हैं|

इससे  स्पष्ट होता है कि गृह हमारे कर्मों के फलानुसार हमें इनाम व दंड यथावसर देते हैं| वेद उद्घोषणा  करते हैं कि सूर्य के साथी ये ग्रह देवता सदा जागते हैं, इनसे प्रार्थना  है कि ये हमारे भीतर बाहर सद्बुद्धि  का उजाला बिखेरते  हुए हमें अच्छे बुरे, दूर पास के, अपने पराये का भेद पहचानेंने  के शक्ति  देकर हमें पीड़ित होने यहाँ  तक की नष्ट  होने या मरने से बचाएं | मूल मंत्र  देखिये -

'सभी देवता व आकाशचारी  आदित्य-सौरमंडल के ग्रह तुम सब की रक्षा करें |वे तुम्हारे  भीतर सदा  जगती हुई अवस्था  में रहें| इस तरह से हमें छुपे और प्रकट शत्रुओं से बचाते  हुए  हमें नष्ट  होने मरने से बचाएं| 

अत:  यह कहने और मानने में किसी संकोच की जगह बचती नहीं है कि अपने किस्मत जगाने  वाले रत्न का निश्चय  करने के लिए सदा अपनी जन्मपत्री  को आधार मानना ही ठीक है | जन्मपत्री में ही सौर मंडल के ग्रहों के स्थति  स्पष्ट  रहती है | अत: रत्न निश्चय का आधार लग्न और ग्रह हैं |

इस दुनिया में अकुन ऐसा है जो कष्ट की कामना  करे ? सबको सरल, सुखी, शांत व समृद्ध  जीवन ही चाहिए | ग्रह हमें कर्मों की अनुसार फल देते हैं, तब हमारे पास क्या पैमाना हैं जिससे हम यह निश्चय कर सकें कि हमने सब शुभ कर्म ही किये होंगे, इसी से हमें सदा शुभ  फल ही मिलेंगे | अत: शुभाशुभ  फल भी हमारी नियति  है| मनुष्य पूजा, पाठ दान पुण्य, मानव मात्र क़े लिए उपकारक कार्य, रत्न, मणि, धारण आदि क्या -क्या जतन शुभ फल पाने यानि इष्टयोग और अनिष्टवियोग , अनचाये से दूरी बनाने क़े लिए नहीं करता है | जब शुभ व अशुभ दोनों  ही फल ग्रहों क़े अधीन  है और हमें समयनुसार मिलने ही हैं तो क्यों न हम कोई ऐसा जतन करें जिससे हमारे अशुभ फल क़े ताब, तासीर, जलन, संताप  कम हो सके |इसी क्रम में ऋषियों  ने मणि मंत्र और ओषध का निर्देश दिया है | मंत्र  जप, दान-पुण्य आस्तिक लोग ही कर सकते हैं, लेकिन नास्तिक या समय व विधि  ठीक से न जानने क़े कारण बहुत से आस्तिक  भी  ये विधिविधान  करने  में खुद  को मुश्किल में पाते हैं |इसीलिए  सर्वसाधारण उपायों में सिरमौर उपाय है- रत्नों से शुभता को बढ़ाना |यहीं पर यह यक्ष प्रश्न उपस्तिथ  होता है कि कौन से ग्रह का रत्न पहनें ? क्या सारे ग्रहों कि रत्न पहनें?

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